प्रतिस्पर्धा करना सही है परन्तु ईर्ष्या की भावना के साथ की गयी प्रतिस्पर्धा गलत है । प्रतिस्पर्धा करना तब तक सही है जब तक आप खुद आगे बढ़ने का सोचे, पर प्रतिस्पर्धा करना तब गलत है जब आप किसी को खुद से नीचा दिखाने का सोचे । काम में आगे बढ़ने के लिए प्रतोयिगता जरूरी है लेकिन अपनी योग्यताओं और सफलताओं को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। अगर प्रतिस्पर्धा नहीं होती है तो हम खुद को नहीं जान सकते, की हम क्या है,हम क्या कर सकते है, क्या हमारी कमजोरी है , क्या हमारी ताकत है, हमे जीवन में क्या करना है। मैं आगे बढूं यह भाव जरूर होना चाहिए, पर दूसरा आगे न बढ़े या दूसरे को नीचा दिखाने का भाव नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक प्रवृत्ति बढ़ने लगती है। नकारात्मक प्रतिस्पर्धा कई बार घातक साबित होती है। जीवन में आगे बढ़ने और कुछ कर गुजरने के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल होने का मतलब यह नहीं कि दूसरे को प्रतिद्वंद्वी बना लें और उससे तुलना करके खुद को हीन या श्रेष्ठ साबित करें। ऐसी चीजें नकारात्मक भावना की ओर ले जाती हैं। प्रतिस्पर्धा के दौरान किसी से मतभेद भले ही हो जाये पर मनभेद कभी नहीं होना चाहिए।
No comments:
Post a Comment